रविवार का दिन आया तो सोचा करें आराम,
हफ्ते में इक दिन छुट्टी का, वह भी हुआ हराम!
भक्तिगीतों ने जब कर दी मेरी सुबह बरबाद,
तब पता चला कि इसी दिन हुआ था देश आज़ाद.
ऐसा भला क्या हुआ जो हर कोई झूमे-गाए?
रिश्वत लेने वाली जेब पर आज तिरंगा लहराए?
क्या मतलब इस आज़ादी का, हम तो अब भी हैं गुलाम,
अँग्रेज़ चले गये, तो बड़े बाबू को मिला सलाम.
कहने को तो आज़ादी को हो गये तिरसठ साल,
फिर भी मन में उमड़ रहे हैं कई अनसुलझे सवाल.
आज भी क्यों करती हैं नज़रें जन्म-जात का अंतर?
क्यों रह-रहकर उठता है प्रश्न-'यह कैसा परजा तन्तर?'
क्या मजबूरी है कि भाई है भाई के खून का प्यासा?
'चलता है!' कहकर क्यों हम खुद को दें दिलासा?
भूख, बीमारी, भ्रष्टाचार के कीड़े जब तक है यहाँ आबाद,
कैसे कह दूँ मैं कि भैया, देश मेरा आज़ाद?
हफ्ते में इक दिन छुट्टी का, वह भी हुआ हराम!
भक्तिगीतों ने जब कर दी मेरी सुबह बरबाद,
तब पता चला कि इसी दिन हुआ था देश आज़ाद.
ऐसा भला क्या हुआ जो हर कोई झूमे-गाए?
रिश्वत लेने वाली जेब पर आज तिरंगा लहराए?
क्या मतलब इस आज़ादी का, हम तो अब भी हैं गुलाम,
अँग्रेज़ चले गये, तो बड़े बाबू को मिला सलाम.
कहने को तो आज़ादी को हो गये तिरसठ साल,
फिर भी मन में उमड़ रहे हैं कई अनसुलझे सवाल.
आज भी क्यों करती हैं नज़रें जन्म-जात का अंतर?
क्यों रह-रहकर उठता है प्रश्न-'यह कैसा परजा तन्तर?'
क्या मजबूरी है कि भाई है भाई के खून का प्यासा?
'चलता है!' कहकर क्यों हम खुद को दें दिलासा?
भूख, बीमारी, भ्रष्टाचार के कीड़े जब तक है यहाँ आबाद,
कैसे कह दूँ मैं कि भैया, देश मेरा आज़ाद?