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Ashish Vaswani

ऐ ओबामा तूने लगाई ओसामा की वाट,

एक सुनहरे सपने की यह है एक नई शुरुवात.



इस बार तो तूने सच में कर दिया बुराई की खात्मा,


जरूर पिछले जन्म में रहा होगा तू कोई पवित्र आत्मा.



ओसामा ने जब किया वह काण्ड दस साल पहले,


तब से दे रहा हूँ मैं अपने घरों को पहरे.



अब लगता है कि ले लूं एक छोटी सी ब्रेक,


पर यह याद आ जाता कि ओसामा नहीं है सिर्फ एक.



तू आया था हमारे देस लेकर प्यार का पैगाम,


तब से छलका रहा हूँ मैं वही प्यार का जाम.



एक बार फिरसे आजा लेकर अपनी न्याय की टोली


ताकि इस बार हम मिलके उठा सके कसब और दवूद की डोली.



और अब की बार ले आना पिंकी-चिंकी को भी भाभी के साथ,

ताकि मिथुनदा भी कह सके, "क्या बात, क्या बात, क्या बात!"

Ashish Vaswani
रविवार का दिन आया तो सोचा करें आराम,

हफ्ते में इक दिन छुट्टी का, वह भी हुआ हराम!


भक्तिगीतों ने जब कर दी मेरी सुबह बरबाद,

तब पता चला कि इसी दिन हुआ था देश आज़ाद.


ऐसा भला क्या हुआ जो हर कोई झूमे-गाए?

रिश्वत लेने वाली जेब पर आज तिरंगा लहराए?


क्या मतलब इस आज़ादी का, हम तो अब भी हैं गुलाम,

अँग्रेज़ चले गये, तो बड़े बाबू को मिला सलाम.


कहने को तो आज़ादी को हो गये तिरसठ साल,

फिर भी मन में उमड़ रहे हैं कई अनसुलझे सवाल.


आज भी क्यों करती हैं नज़रें जन्म-जात का अंतर?

क्यों रह-रहकर उठता है प्रश्न-'यह कैसा परजा तन्तर?'


क्या मजबूरी है कि भाई है भाई के खून का प्यासा?

'चलता है!' कहकर क्यों हम खुद को दें दिलासा?


भूख, बीमारी, भ्रष्टाचार के कीड़े जब तक है यहाँ आबाद,

कैसे कह दूँ मैं कि भैया, देश मेरा आज़ाद?